२६ मई २०१०
हम सब बैठे होकर मौन
धरती अपनी बचाए कौन?
रेत के नीचे सूखी नदियाँ
आगे होंगी प्यासी सदियाँ
धरती की प्यास बुझे तो कैसे
पानी के बीज लगाए कौन?
रंग बिरंगे कंक्रीट के जंगल
होंगे कब तक अपने संबल
वस्त्रहीन धरती को फिर से
वस्त्र हरे पहनाये कौन?
सूरज आग लगाने आतुर
साए सारे हो गए काफूर
अम्बर से शोलों की बारिश
धरती की ताप बुझाये कौन?
वृक्ष धरा के अंग हैं यारों
इन्हें बचाओ इन्हें न मारो
लहू-लुहान हो धरती पसरी
उसकी पीर सुनाये कौन?
हम सब बैठे होकर मौन
धरती अपनी बचाए कौन?
हम सब बैठे होकर मौन
धरती अपनी बचाए कौन?
रेत के नीचे सूखी नदियाँ
आगे होंगी प्यासी सदियाँ
धरती की प्यास बुझे तो कैसे
पानी के बीज लगाए कौन?
रंग बिरंगे कंक्रीट के जंगल
होंगे कब तक अपने संबल
वस्त्रहीन धरती को फिर से
वस्त्र हरे पहनाये कौन?
सूरज आग लगाने आतुर
साए सारे हो गए काफूर
अम्बर से शोलों की बारिश
धरती की ताप बुझाये कौन?
वृक्ष धरा के अंग हैं यारों
इन्हें बचाओ इन्हें न मारो
लहू-लुहान हो धरती पसरी
उसकी पीर सुनाये कौन?
हम सब बैठे होकर मौन
धरती अपनी बचाए कौन?
No comments:
Post a Comment
मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.