सादगी से जहाँ में निभाये चलो।
आन भी हौसला भी बचाये चलो।
इंदिया जिन्दगी का यही एक है,
इश्क की पाक लौ को जलाये चलो।
आलमे आरिजी क्या गमों के सिवा?
आलमे आरिजी को भुलाये चलो।
आप जो साथ हों हर घड़ी बज्म है,
जिंदगी को सुरों में सजाये चलो।
आप ही आसमाँ आप ही हो जमीं
आइदा आशियाँ पे बनाये चलो।
ओहदा है खुदा का जहाँ से जुदा,
आशिकी में उसी के बिताये चलो।
खार ही खार हों राह तो क्या हुआ?
ताकते खुद 'हबीब' आजमाये चलो।
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राहे हयात = जिन्दगी का पथ | इंदिया = उद्देश्य | आलमे आरिजी = मृत्युलोक | आइदा = अनुकम्पा | खार = कांटे (कठिनाई) |
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आप ही आसमाँ आप ही हो जमीं
ReplyDeleteआइदा आशियाँ पे बनाये चलो।... क्या बात है !
"खार ही खार हों राह तो क्या हुआ?
ReplyDeleteताकते खुद 'हबीब' आजमाये चलो।"
बहुत सुंदर गज़ल और उर्दु शब्दों के अर्थ लिखकर तो आपने बहुत उम्दा काम किया है। मैंने भी उर्दु के कुछ नये शब्द सीखे। शुक्रिया ।
ओहदा है खुदा का जहाँ से जुदा,
ReplyDeleteआशिकी में उसी के बिताये चलो।
खार ही खार हों राह तो क्या हुआ?
ताकते खुद 'हबीब' आजमाये चलो।
Habib sahab Adab ke sath hi shukriya ... janab ak vajandar gazal ke liye tahedil se mubarkvad deta hoon.
इंदिया जिन्दगी का यही एक है,
ReplyDeleteइश्क की पाक लौ को जलाये चलो।
बहुत खूब
बहुत खूब ... लाजवाब शेर हैं सभी ...
ReplyDeleteसादगी से जहाँ में निभाये चलो।
ReplyDeleteआन भी हौसला भी बचाये चलो।
सादा जीवन उच्च विचार ....!!
बहुत सुंदर .
ओहदा है खुदा का जहाँ से जुदा,
ReplyDeleteआशिकी में उसी के बिताये चलो।
...बहुत खूब...लाज़वाब गज़ल..
bahut hi sundar or behtarin rachana hai...
ReplyDeleteउम्दा लिखा है ... अच्छी लगी..
ReplyDeleteआप ही आसमाँ आप ही हो जमीं
ReplyDeleteआइदा आशियाँ पे बनाये चलो।... क्या बात है !
आप ही आसमाँ आप ही हो जमीं
ReplyDeleteआइदा आशियाँ पे बनाये चलो।
वाह बहुत खूब ...उम्दा
mujhe apake ghazal padhane se ajeeb shaanti milatee hai. taareef je kie shabd nahi hai.
ReplyDeleteबहुत खूब.....
ReplyDeleteखार ही खार हों राह तो क्या हुआ?
ReplyDeleteताकते खुद 'हबीब' आजमाये चलो।
ग़ज़ल का मकता बहुत अच्छा लगा मुबारक हो
behad sundar gazal kahi hai aapne.yoo hi likhte rahe shubhkaamnaye
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत प्रस्तुति ||
ReplyDeleteसादगी आपकी ग़ज़लों की खूबसूरती होती है.. और याह गज़ल भी उसी श्रइन्खाला की एक कड़ी है!!
ReplyDeleteबहुत उम्दा
ReplyDeleteखूबसूरत और उम्दा गजल....
ReplyDeleteगहरे अहसास की बानगी के लिए बधाई......
हां,खुदा का ओहदा सचमुच जहां से जुदा है। असली बात यही है।
ReplyDeleteबहुत खूब.....शानदार है ग़ज़ल|
ReplyDeletebahut saarthak rachna, har sher behad umda, shubhkaamnaayen.
ReplyDeletebhaut behtreen gazal........
ReplyDeleteओहदा है खुदा का जहाँ से जुदा,
ReplyDeleteआशिकी में उसी के बिताये चलो।
खार ही खार हों राह तो क्या हुआ?
ताकते खुद 'हबीब' आजमाये चलो।
वाह ...बहुत खूब ।
बहुत खूब लिखा है
ReplyDeleteआशा
खार ही खार हों राह तो क्या हुआ?
ReplyDeleteताकते खुद 'हबीब' आजमाये चलो।
..बेहतरीन!
आपके पोस्ट पर आकर का विचरण करना बड़ा ही आनंददायक लगता है । ipn अच्छा लगी । मेरे नए पोस्ट "लेखनी को थाम सकी इसलिए लेखन ने मुझे थामा": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद। .
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ग़ज़ल है!
ReplyDeleteआप ही आसमाँ आप ही हो जमीं
ReplyDeleteआइदा आशियाँ पे बनाये चलो।
बहुत खूबसूरत...
वाह ..पूरी गज़ल ही बहुत खूब .. कौन सा शेर चुनूँ ?
ReplyDeleteआप ही आसमाँ आप ही हो जमीं
आइदा आशियाँ पे बनाये चलो।
यह सबसे अच्छा लगा . :)
सुंदर अभिव्यक्ति बढ़िया गजल ....बेहतरीन पोस्ट
ReplyDeletewelcome to new post --"काव्यान्जलि"--
ओहदा है खुदा का जहाँ से जुदा,
ReplyDeleteआशिकी में उसी के बिताये चलो।
बहुत खूब..
दाद कबूल करें..
आप ही आसमाँ आप ही हो जमीं
ReplyDeleteआइदा आशियाँ पे बनाये चलो।
लाजबाब ग़ज़ल
आप जो साथ हों हर घड़ी बज्म है,
ReplyDeleteजिंदगी को सुरों में सजाये चलो।
लाजवाब!
आप ही आसमाँ आप ही हो जमीं
ReplyDeleteआइदा आशियाँ पे बनाये चलो।
बेहतरीन ग़ज़ल
vikram7: हाय, टिप्पणी व्यथा बन गई ....
बहुत सुंदर प्रस्तुति,बेहतरीन एक अच्छी गजल,..बधाई
ReplyDeletewelcome to new post --काव्यान्जलि--यह कदंम का पेड़--
इंदिया जिन्दगी का यही एक है,
ReplyDeleteइश्क की पाक लौ को जलाये चलो।
और ....
आप ही आसमाँ आप ही हो जमीं
आइदा आशियाँ पे बनाये चलो।
एक उस्ताद शायर का बेहतरीन कलाम ...
...हबीब जी गुस्ताखी मुआफ अब से आपको हबीब भाई बोला करूँगा...हाँ मिश्रा जी भी कहना मुझे उतना ही प्रिय है..अनुमति चाहता हूँ !!
बहुत ही प्रशंसनीय.....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
क्या बात है । बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteकुछ नये शब्द जानने को मिले। धन्यवाद।
ओहदा है खुदा का जहाँ से जुदा,
ReplyDeleteआशिकी में उसी के बिताये चलो।
खार ही खार हों राह तो क्या हुआ?
ताकते खुद 'हबीब' आजमाये चलो।
वाह संजय जी, कितनी ऊँची बात कह दी,वाह !!!!
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब ग़ज़ल लिखा है आपने! बधाई!
ReplyDeleteग़ज़ल का एक-एक शेर
ReplyDeleteखुद को पढवा रहा है ....
बहुत अच्छा कलाम है .. मुबारकबाद .
वाह! बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteपढकर मन मग्न हो गया है,जी.
आभार.
बहुत अच्छी सुंदर प्रस्तुति,बढ़िया अभिव्यक्ति रचना अच्छी लगी.....
ReplyDeletenew post--काव्यान्जलि : हमदर्द.....
बहुत सुंदर गज़ल वाह! बहुत सुन्दर......
ReplyDeleteबेहतरीन गज़ल...
ReplyDeleteबधाई...आभार....!!
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ReplyDeleteओहदा है खुदा का जहाँ से जुदा,
ReplyDeleteआशिकी में उसी के बिताये चलो।
ग़ज़ल और उसके सारे शेर अच्छे लगे।
sab kuchh behtareen ....badhai ke sath abhar.
ReplyDeleteसादगी से जहाँ में निभाये चलो।
ReplyDeleteआन भी हौसला भी बचाये चलो।
बेहतरीन रचनाएँ...
ओ बी ओ पर भी रचनाएँ पढ़ीं 'तलाश'शीर्षक पर
सभी बहुत अच्छी लगी|
बहुत ही सुन्दर और खूबसूरत गजल..बधाई
ReplyDeleteदिल को छू लेन वाली गजल बहुत अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
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