मैं सहर की शाम की हर पीर लिखता हूँ
जिंदगी में हर कदम तज्वीर लिखता हूँ |१|
काट कर जड़ जंगलों की बादलों की मैं,
इस धरा की सूखती तकदीर लिखता हूँ |२|
हसरतों ने राह मेरी रोक ली ऐसे,
अपने पैरों में पडी जंजीर लिखता हूँ |३|
बेच कर ईमान रब से चैन मांगूंगा,
सर उठा कर बेशरम तहरीर लिखता हूँ |४|
आज रांझे भूल बैठे इश्क शय क्या है,
बिक रही बाजार में जो हीर लिखता हूँ |५|
दूध में इसको भिगा वो रोज खा लेते,
मुल्क अपना हो गया अंजीर लिखता हूँ |६|
एक झटके में जिगर के पार हो जाये
मैं ‘हबीब’ उनकी नजर को तीर लिखता हूँ |७|
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तज्वीर = धोखा/असत्य
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bahut gahan shayarii....
ReplyDeletebahut sundar ...
waahb bahut khoob....
ReplyDeleteएक झटके में जिगर के पार हो जाये
ReplyDeleteमैं ‘हबीब’ उनकी नजर को तीर लिखता हूँ |७|....वाह: बहुत खूब...
आज रांझे भूल बैठे इश्क शय क्या है,
ReplyDeleteबिक रही बाजार में जो हीर लिखता हूँ |
बहुत खूब...
वाह वाह, कुछ शेर तो भारी बन पड़े हैं। उम्दा रचना है हबीब भाई।
ReplyDeleteकाट कर जड़ जंगलों की बादलों की मैं,
ReplyDeleteइस धरा की सूखती तकदीर लिखता हूँ |२|
कोई ऐसा शब्द नहीं जो दिल के करीब नहीं लगता ,सब लाइन ह्रदय को छूते हैं
दी गई लाइन मेरे दिल के सबसे करीब लगी . उम्दा अति उम्दा
लाजवाब.................
ReplyDeleteवाह ...
ReplyDeleteवाह! बहुत ही खूबसूरत गज़ल!
ReplyDelete"आज रांझे भूल बैठे इश्क शय क्या है,
बिक रही बाजार में जो हीर लिखता हूँ "
मेरे ब्लॉग का link -www.sushilashivran.blogspot.in
ReplyDeleteआपका इंतज़ार है मेरे ब्लॉ पर!
काट कर जड़ जंगलों की बादलों की मैं,
ReplyDeleteइस धरा की सूखती तकदीर लिखता हूँ
वाह ,,,, बहुत खूब, बेहतरीन गजल,......
MY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: ब्याह रचाने के लिये,,,,,
हसरतों ने राह मेरी रोक ली ऐसे,
ReplyDeleteअपने पैरों में पडी जंजीर लिखता हूँ
काश..
दूध में इसको भिगा वो रोज खा लेते,
ReplyDeleteमुल्क अपना हो गया अंजीर लिखता हूँ |६|
बहुत बढ़िया और बेहद तीखा प्रहार ...
वाह...............
ReplyDeleteबेहतरीन गज़ल...
आज रांझे भूल बैठे इश्क शय क्या है,
बिक रही बाजार में जो हीर लिखता हूँ...
लाजवाब शेर...
सादर.
हसरतों ने राह मेरी रोक ली ऐसे,
ReplyDeleteअपने पैरों में पडी जंजीर लिखता हूँ |३|
दूध में इसको भिगा वो रोज खा लेते,
मुल्क अपना हो गया अंजीर लिखता हूँ |६|
लाज़वाब मर हवा .
बेच कर ईमान रब से चैन मांगूंगा,
ReplyDeleteसर उठा कर बेशरम तहरीर लिखता हूँ |४|
Mishr ji gazal ke hr sher apna gahra asar chhod rahe hain ......lajbab gazal ke liye shat shat abhar.
वाह |||
ReplyDeleteबहुत खूब......
बहुत ही सुन्दर...
mishar ji bahut hi sundar gazal ...hr sher ak se badh kr ak ....sadar badhai ke sath abhar bhi .
ReplyDeletebahut bahut dhiya--
ReplyDeletekisi ek ki kya tarrif likhun sabhi panktiyan ek se badh ek hai0000
behtreen gazal ke liye hardik bdhai-----
poonam
बढ़िया गज़ल...........
ReplyDeleteहमारी पहली टिपण्णी स्पाम से निकालिए सर
सादर.
हसरतों ने राह मेरी रोक ली ऐसे,
ReplyDeleteअपने पैरों में पडी जंजीर लिखता हूँ |३|
Bahut Sunder....
आज रांझे भूल बैठे इश्क शय क्या है,
ReplyDeleteबिक रही बाजार में जो हीर लिखता हूँ .... बहुत बढ़िया
है आज क्यूं टूटा हुआ,जो हबीब है सबका
ReplyDeleteक्या हुआ,कैसे हुआ,मैं आज लिखता हूं!
कमाल..कमाल ...बेमिसाल...
ReplyDeleteकाट कर जड़ जंगलों की बादलों की मैं,
ReplyDeleteइस धरा की सूखती तकदीर लिखता हूँ
हर शे'र के लिए वाह... वाह... वाह !!!
सादर
दूध में इसको भिगा वो रोज खा लेते,
ReplyDeleteमुल्क अपना हो गया अंजीर लिखता हूँ |६|
बड़ी तीखी गजल .... बहुत सुंदर ...
आज रांझे भूल बैठे इश्क शय क्या है,
ReplyDeleteबिक रही बाजार में जो हीर लिखता हूँ |५|
kya bat hai habib ji ....
bahut khoob ....!!
vyastta ke karan jra net se dur hun aajkal .....
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल।
ReplyDeleteहर शेर एक से बढ़ कर एक...
ReplyDeleteबेच कर ईमान रब से चैन मांगूंगा,
ReplyDeleteसर उठा कर बेशरम तहरीर लिखता हूँ |
आज हर तरफ़ यह तहरीर लिखा मिलता है। और एक और लाजवान शे’र है --
आज रांझे भूल बैठे इश्क शय क्या है,
बिक रही बाजार में जो हीर लिखता हूँ |
ख़रीद-फ़रोख़्त के इस बाज़ार में इश्क़ मे मोल-तोल से जी ऊब-सा गया है।
आपकी ग़ज़ल ने हिंदी गज़लों के सबसे बड़े शायर"दुष्यंत कुमार " की याद दिला दी
ReplyDeleteकाट कर जड़ जंगलों की बादलों की मैं,
ReplyDeleteइस धरा की सूखती तकदीर लिखता हूँ ...
जबरदस्त ... आज के हालात पे चुटकी ली है इस शेर में संजय जी ...
बहुत ही लाजवाब गज़ल बन पड़ी है पूरी ... बधाई हो ...
जी हाँ ,हबीब साहब गाय भी ज्यादा दूध देती है संगीत का जादू सर चढ़के बोलता है .पंडित रविशंकर का सितार वादन सुनके फसलें खिल खिला उठती हैं .'बैजू बावरा' फिल्म में संगीत का यह जादू दिखलाया गया है .'शबाब' में भी .
ReplyDeletelazabab.....
ReplyDeleteसच की इस आह से पाठक बच नहीं सकते, बहुत खूब!
ReplyDeleteहसरतों ने राह मेरी रोक ली ऐसे,
ReplyDeleteअपने पैरों में पडी जंजीर लिखता हूँ |३|
....बहुत सुन्दर ! बेहतरीन गज़ल....
आज रांझे भूल बैठे इश्क शय क्या है,
ReplyDeleteबिक रही बाजार में जो हीर लिखता हूँ ।
हर शेर हक़ीकत को बयां कर रहा है।
बेहतरीन ग़ज़ल ।
आज रांझे भूल बैठे इश्क शय क्या है,
ReplyDeleteबिक रही बाजार में जो हीर लिखता हूँ.
यूं तो सारे शेर लाजवाब है परन्तु यह तो आज की सच्चाई हूबहू बयाँ करता है. बधाई इस सुंदर प्रस्तुति के लिये.
काट कर जड़ जंगलों की बादलों की मैं,
ReplyDeleteइस धरा की सूखती तकदीर लिखता हूँ |२|
हसरतों ने राह मेरी रोक ली ऐसे,
अपने पैरों में पडी जंजीर लिखता हूँ |३|
बहुत उम्दा ।
मैं सहर की शाम की हर पीर लिखता हूँ
ReplyDeleteजिंदगी में हर कदम तज्वीर लिखता हूँ
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आज रांझे भूल बैठे इश्क शय क्या है,
बिक रही बाजार में जो हीर लिखता हूँ
लाजवाब...लाजवाब....लाजवाब.....
बहुत खूब "अपने पैरों में पड़ी जंजीर लिखता हूँ "
ReplyDeleteआशा
हबीब साहब ग़ज़ल की खूबी है जब भी पढ़ी जाए सर पे सवार हो जाए ,ऐसा ही हो रहा है .यकीन मानिए आपकी साहित्यिक टिप्पणियों का वजन भी बहुत ज्यादा होता है .सलामत रहो .
ReplyDeleteआदाब .कृपया यहाँ भी -
बृहस्पतिवार, 21 जून 2012
सेहत के लिए उपयोगी फ़ूड कोम्बिनेशन
सेहत के लिए उपयोगी फ़ूड कोम्बिनेशन
http://veerubhai1947.blogspot.in/
ram ram bhai
दूध में इसको भिगा वो रोज खा लेते,
ReplyDeleteमुल्क अपना हो गया अंजीर लिखता हूँ
वाह !!!! अद्भुत कल्पना
मैंने पूछा इतना उम्दा कैसे लिखते हो
ReplyDeleteबोले संजय, अपना सीना चीर लिखता हूँ |
मैं सहर की शाम की हर पीर लिखता हूँ
ReplyDeleteजिंदगी में हर कदम तज्वीर लिखता हूँ
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आज रांझे भूल बैठे इश्क शय क्या है,
बिक रही बाजार में जो हीर लिखता हूँ
नि:शब्द करती पंक्तियां ... लाजवाब प्रस्तुति ... आभार
मक्ते के तीर ही नहीं, हर शेर खंजर चुभो रहे हैं भाई जी। ..उम्दा गज़ल।
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