समस्त सम्माननीय मित्रों को सादर नमन सहित आज प्रस्तुत है ओपन बुक्स आनलाईन महा उत्सव अंक १५ के लिए तलाश विषय रचित दोहे....
आँखें अपनी हैं खुली, खोज रही चंहु ओर|
आँखें अपनी हैं खुली, खोज रही चंहु ओर|
जाने क्यूँ दिखता नहीं, नजरों से ही भोर |१|
खेत तलासे नेह को, माटी मांगे स्वेद|
बरखा ढूंढे बीज सब, करे नहीं वो भेद|२|
पनघट को पनिहारिनें, पनघट मीठे गीत|
गोकुल गलियाँ ढूंढती, कांकर मटकी प्रीत|३|
गायें गोचर खोजती, गोचर कोमल दूब|
घर घर खोजे सांवरा, माखन खाए खूब |४|
कोयलिया की तान हो, अमुवा चाहे नित्य|
मनवा भूखा ढूंढता, सहज सरस साहित्य |५|
सावन सूखे पेड़ को, पेड़ खगों के साज|
जंगल रोकर ढूंढता, हरियाली को आज|६|
नैया बोले नाखुदा, नदिया बोले नाव|
शहरों में खोजें कहाँ, भोले भाले गाँव |७|
दिनकर ढूंढे ताल को, ताल खिला, दे फूल|
योग और सहयोग ही, खुशियों की हैं मूल |८|
यौवन मांगे नौकरी, नौकर करे न काम|
सब के सब ही ढूंढते, अपने अपने राम |९|
मधुर बोल नीची नज़र, जीवन का आधार|
विनम्रता को ढूंढता, गुरुता का सन्सार|१०|
बाट-बाट में खोजता, फिरता है अविराम|
अंदर क्यूँ झांके नहीं, जहाँ बसे घनश्याम|११|
__________________________
behtreen ...
ReplyDeleteअर्थ पूर्ण दोहे .....सादर
ReplyDeleteबहूत हि सुंदर बेहतरीन दोहे...
ReplyDelete:-)
बहुत शानदार दोहे हबीब जी
ReplyDeleteबाट-बाट में खोजता, फिरता है अविराम|
ReplyDeleteअंदर क्यूँ झांके नहीं, जहाँ बसे घनश्याम|
वाह !!!!! बहुत सुंदर दोहे,,,,,बधाई संजय जी
RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,
दिनकर ढूंढे ताल को, ताल खिला, दे फूल|
ReplyDeleteयोग और सहयोग ही, खुशियों की हैं मूल |८|
बहुत सुंदर दोहे ...
शुभकामनायें.
मधुर बोल नीची नज़र, जीवन का आधार|
ReplyDeleteविनम्रता को ढूंढता, गुरुता का सन्सार|१०|
सुंदर , अर्थपूर्ण दोहे...
सावन सूखे पेड़ को, पेड़ खगों के साज|
ReplyDeleteजंगल रोकर ढूंढता, हरियाली को आज|६|
सब के सब सुन्दर संग्रहणीय , आपसे अनुरोध मेल करने का कष्ट करेंगे ........
मनभावन दोहे..आनंद आ गया..
ReplyDeleteहृदय बसी सब शान्ति, जगत हम ढूढ़ें फिरते..बहुत ही सुन्दर रचना..
ReplyDeleteसावन सूखे पेड़ को, पेड़ खगों के साज|
ReplyDeleteजंगल रोकर ढूंढता, हरियाली को आज... वाह
सावन सूखे पेड़ को, पेड़ खगों के साज|
ReplyDeleteजंगल रोकर ढूंढता, हरियाली को आज|६|
सभी दोहे कुछ न कुछ तलाश करते हुये ...बहुत सुंदर
बहुत प्यारे...मनभावन दोहे......
ReplyDeleteसादर
अनु
सुन्दर सार्थक दोहे!
ReplyDeleteसुन्दर और शानदार प्रस्तुति।
ReplyDeleteखेत तलासे नेह को, माटी मांगे स्वेद|
ReplyDeleteबरखा ढूंढे बीज सब, करे नहीं वो भेद...
very nice.
.
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार २६/६ १२ को राजेश कुमारी द्वारा
ReplyDeleteचर्चामंच पर की जायेगी
सावन सूखे पेड़ को, पेड़ खगों के साज|
ReplyDeleteजंगल रोकर ढूंढता, हरियाली को आज|६|
बहुत ही अर्थ पूर्ण दृष्टि से संसिक्त दोहावली -
ये तेजाबी बारिशें ,बिजली घर की राख ,
एक दिन होगा भूपटल वारणावर्त की लाख .
बहुत ही शानदार...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeletebehad arthpoorn rchna , vastvikta ke behad kreeb .
ReplyDeletebdhai .
अनुपम ... लाजवाब दोहे हाँ सभी ... हर दोहा तलाश शब्द पे सार्थक उतरता है ... बहुत सुन्दर .... बधाई ...
ReplyDeleteखेत तलासे नेह को, माटी मांगे स्वेद|
ReplyDeleteबरखा ढूंढे बीज सब, करे नहीं वो भेद|२|
सग्रहनीय दोहे .....
भैया जी संग्रह हेतु आपके मेल का इंतजार
हर दोहा लाजवाब!
ReplyDeleteमुझे यह विशेष रूप से पसंद आया
पनघट को पनिहारिनें, पनघट मीठे गीत|
गोकुल गलियाँ ढूंढती, कांकर मटकी प्रीत|३|
नैया बोले नाखुदा, नदिया बोले नाव|
ReplyDeleteशहरों में खोजें कहाँ, भोले भाले गाँव |७|
वाह क्या बात है हबीब साहब आनुप्रासिक छटा बिखेर दी इस दोहे में नगर नगर चहूँ और हैं कहाँ ढूंढता गाँव ./काट दिए सब पेड़ तो फिर क्यों ढूंढें छाँव ..शहरीकरण को संबोधित बेहतरीन भाव दोहा .
......वीरुभाई परदेसिया .४३,३०९ ,सिल्वर वुड ड्राइव ,कैंटन ,मिशिगन ४८ ,१८८
सभी दोहे एक से बढकर एक। तलाश अच्छी तो मंज़िल खूब!
ReplyDeleteप्रवास से लौटते ही बनता हूँ कोई जवाबी दोहा.
ReplyDeleteपनघट को पनिहारिनें, पनघट मीठे गीत|
ReplyDeleteगोकुल गलियाँ ढूंढती, कांकर मटकी प्रीत|३|
वाह ! सभी दोहे एक से बढ़ कर एक...
बहुत भावपूर्ण दोहे |
ReplyDeleteआशा
bahut bahut hi badhiya lage aapke dohe ---
ReplyDeletesabhi arthpurn v ek se badh kar ek
aabhaar
poonam
खेत तलासे नेह को, माटी मांगे स्वेद|
ReplyDeleteबरखा ढूंढे बीज सब, करे नहीं वो भेद
मधुर बोल नीची नज़र, जीवन का आधार|
विनम्रता को ढूंढता, गुरुता का सन्सार
अर्थपूर्ण दोहे ...बहुत बढ़िया
lajawab
ReplyDeleteपनघट को पनिहारिनें, पनघट मीठे गीत|
ReplyDeleteगोकुल गलियाँ ढूंढती, कांकर मटकी प्रीत|
कमाल है ...
बेहद प्रभावशाली रचना ! आभार आपका !
खेत तलासे नेह को, माटी मांगे स्वेद,
ReplyDeleteबरखा ढूंढे बीज सब, करे नहीं वो भेद।
अनुपम भाव संजोए हैं आपने इन सुंदर दोहों में।
वाह ... बहुत खूब सभी दोहे एक से बढ़कर एक ... आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और शानदार प्रस्तुति।..आभार
ReplyDeleteअन्दर झांके क्यों नहीं , जहाँ बसे घंस्यम.....वाह
ReplyDeleteखेत तलासे नेह को, माटी मांगे स्वेद|
ReplyDeleteबरखा ढूंढे बीज सब, करे नहीं वो भेद|२|
मधुर बोल नीची नज़र, जीवन का आधार|
विनम्रता को ढूंढता, गुरुता का सन्सार|१०|
बाट-बाट में खोजता, फिरता है अविराम|
अंदर क्यूँ झांके नहीं, जहाँ बसे घनश्याम
प्रिय मिश्र जी कविले तारीफ आप के दोहे ...किस किस की तारीफ़ की जाए ..सुन्दर सन्देश ....बधाई हो
भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
एक से बढ़क एक खूबसूरत दोहे।..वाह!
ReplyDeleteबहुत सुंदर,
ReplyDeleteसभी दोहे एक से बढकर एक
दिनकर ढूंढे ताल को, ताल खिला, दे फूल|
ReplyDeleteयोग और सहयोग ही, खुशियों की हैं मूल |८|
यौवन मांगे नौकरी, नौकर करे न काम|
सब के सब ही ढूंढते, अपने अपने राम |९|
मधुर बोल नीची नज़र, जीवन का आधार|
विनम्रता को ढूंढता, गुरुता का सन्सार|१०|
वाह संजय जी ........बहुत ही खूबसूरती से बयान की गई है हर पंक्ति...........बधाई हो ...
सरस दोहावली ,अर्थ गर्भित दोहे सारे के सारे ,समेटे सारा परिवेश .
ReplyDeleteबहुत खूबशूरत भावों की अभिव्यक्ति ,,,
ReplyDeleteसुंदर संम्प्रेषण,,,,
I read your post interesting and informative. I am doing research on bloggers who use effectively blog for disseminate information.My Thesis titled as "Study on Blogging Pattern Of Selected Bloggers(Indians)".I glad if u wish to participate in my research.Please contact me through mail. Thank you.
ReplyDeletehttp://priyarajan-naga.blogspot.in/2012/06/study-on-blogging-pattern-of-selected.html
अप्रतिम प्रस्तुति है आपकी सार्वकालिक .
ReplyDeleteएक से बढ़क एक खूबसूरत दोहे सुंदर प्रस्तुति है
ReplyDeleteआज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
ReplyDeleteखेत तलासे नेह को, माटी मांगे स्वेद,
ReplyDeleteबरखा ढूंढे बीज सब, करे नहीं वो भेद।
सभी दोहे बहुत सुन्दर लग रहे हैं...
सादर बधाई !!
आ० सर,
इस लिंक पर आपके हाइगा प्रकाशित हैं|
अवलोकन करने की कृपा करें|
http://hindihaiga.blogspot.in/2012/07/blog-post.html
अनुभव में रहता छिपा,है जीवन का सार
ReplyDeleteपहले बांटें,तो मिले,मुक्त हृदय से प्यार!