(1)
तुझे सोचा
तो उदासी घिर आई है
बादल बन कर,
स्मृतियों के कानन में
करवटें बदलने लगे हैं
मयूर... दर्द के...!!
(2)
हवा का वह टुकड़ा
जो तुम्हारे गेसुओं के बीच
मुस्कुराता...
अठखेलियाँ करता था,
मेरी आँखों में
भाप बन कर बैठ गया है...
जानता हूँ, अभी यह
ठंडा होकर पिघलेगा...
भीतर उठेगी एक सुनामी....!!
(3)
तेरी यादों के बादल का
सिरहाना बना
सोया था...
रात विचरती रही
आसमान में,
शायद मुझे साथ लिए हुए...
सुबह जागा
तो तर था चेहरा
शबनम की बूंदों से....
(4)
तेरे कहे शब्द
जुगनू बन कर बैठ जाते हैं
अक्सर
नीब पर कलम की...
लगता है
मानो खेल रहा हो
हाथों में मेरे, एक...
कस्तूरी मृग !!!
*********************
मस्त क्षणिकाएं है।
ReplyDeleteगागर मे सागर भर दिया है मित्र
आभार
कमाल की क्षणिकाएं हैं... रोमांटिसिज्म की इन्तिहाँ है!! बहुत अच्छे!!
ReplyDeleteसंजय भाई!
ReplyDeleteमयूर दर्द के ... बिम्ब तो नया है, पर ... कुछ ... जम नहीं रहा।
हवा का वह टुकड़ा
ReplyDeleteजो तुम्हारे गेसुओं के बीच
मुस्कुराता...
अठखेलियाँ करता था,
मेरी आँखों में
भाप बन कर बैठ गया है...
जानता हूँ, अभी यह
ठंडा होकर यह पिघलेगा...
भीतर उठेगी एक सुनामी....!!
ये दर्द की इंतहां को व्यक्त करती क्षणिका बेहद पसंद आई।
मानो खेल रहा हो
ReplyDeleteहाथों में मेरे, एक...
कस्तूरी मृग !!!
बहुत खूब!!
आपकी क्षणिकाएं भी बेहद रोचक, और सुंदर बिम्बों के प्रयोग से सजी हैं।
बहुत ही खुबसूरत और कोमल भावो की क्षणिकाएं....
ReplyDeleteकमाल की अभिव्यक्ति है !
ReplyDeleteचारों क्षणिकाएं चार नये बिम्ब लेकर आपकी चहुँमुखी प्रतिभा का बखान करती हुईं.
ReplyDeleteप्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट " जाके परदेशवा में भुलाई गईल राजा जी" पर आपके प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । नव-वर्ष की मंगलमय एवं अशेष शुभकामनाओं के साथ ।
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक हैं... अनोखे भाव... आभार
ReplyDeleteसुन्दर क्षणिकाएं.
ReplyDeleteवाह! पढकर मस्त हो गए जी.
मेरे ब्लॉग पर आपका इंतजार है.
खूबसूरत क्षणिकाये पर इनका असली मजा मयखाने मे ही आयेगा
ReplyDeleteतेरे कहे शब्द
ReplyDeleteजुगनू बन कर बैठ जाते हैं
अक्सर
नीब पर कलम की...
लगता है
मानो खेल रहा हो
हाथों में मेरे, एक...
कस्तूरी मृग !!!
वाह...बहुत खूब ।
हवा का वह टुकड़ा
ReplyDeleteजो तुम्हारे गेसुओं के बीच
मुस्कुराता...
अठखेलियाँ करता था,
मेरी आँखों में
भाप बन कर बैठ गया है...
जानता हूँ, अभी यह
ठंडा होकर यह पिघलेगा...
भीतर उठेगी एक सुनामी....
बहुत खूब ... वैसे सभी क्षणिकाओं का जवाब नहीं पर ये बहुत ही लाजवाब लगी ... आपको नव वर्ष की मंगल कामनाएं ...
सुंदर बिम्बों से सजी खूबसूरत क्षणिकाये.. बहुत बढ़िया लिखा है...
ReplyDeleteसभी अच्छी है अआखिर वाली सबसे ज़्यादा|
ReplyDeleteसारी क्षणिकाएं गहन भाव लिए हुए ... नए बिम्ब लिए हैं ..दर्द का मयूर ..और स्मृतियों का कानन बहुत अच्छा लगा ..
ReplyDeletesabhi ek se badhkar ek.
ReplyDeletevery nice.
सारी क्षणिकाएँ एक से बढकर एक हैं ..
ReplyDeleteअलग२ भाव लिए चारों क्षणिकाएं बहुत सुंदर लगी,...बहुत खूब
ReplyDeleteWELCOME to new post--जिन्दगीं--
सुंदर बिम्बों से सजी खूबसूरत क्षणिकाये.. बहुत बढ़िया !
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन पोस्ट.........
ReplyDeleteखूबसूरत क्षणिकाये.....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति,क्षणिकाएं अच्छी लगी,........
ReplyDeletewelcome to new post--जिन्दगीं--
कुछ दर्द लिए ..कुछ याद लिए ...खूबसूरत क्षणिकाएं ....
ReplyDeleteसुंदर क्षणिकाएं....
ReplyDeleteतुझे सोचा
ReplyDeleteतो उदासी घिर आई है
बादल बन कर,
स्मृतियों के कानन में
करवटें बदलने लगे हैं
मयूर... दर्द के...!!
sundar kshanikayen........
तेरे कहे शब्द
ReplyDeleteजुगनू बन कर बैठ जाते हैं
अक्सर
नीब पर कलम की...
लगता है
मानो खेल रहा हो
हाथों में मेरे, एक...
कस्तूरी मृग !!!
क्या बात है, बहुत ख़ूब !!
कविताओं में कस्तूरी की खुशबू महसूस की जा सकती है।
व्यापक फलक पर मचलते मन के नादान भाव.
ReplyDeleteहबीब साहब ! एक-एक क्षणिका बेमिसाल है ! बधाई !
ReplyDeleteअर्थ सहित .......कमाल ...कमाल
ReplyDeleteस्मृतियों के कानन में
ReplyDeleteकरवटें बदलने लगे हैं
मयूर... दर्द के...!!
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यहाँ तो हालात जरा अलहदा है ...वो हमेशा नाचते ही रहते हैं हबीब साहब !
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हवा का वह टुकड़ा
जो तुम्हारे गेसुओं के बीच
मुस्कुराता...
अठखेलियाँ करता था,
मेरी आँखों में
भाप बन कर बैठ गया है....
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हबीब साहब ..नज्म लिखो न आप तो आमादा-ऐ-क़त्ल है जनाब कमजोर दिल का बंदा हूँ हुज़ूर मर-मरा गया इतनी गहराई में डूब कर तो ...?
......
तेरे कहे शब्द
जुगनू बन कर बैठ जाते हैं
अक्सर
नीब पर कलम की...
लगता है
मानो खेल रहा हो
हाथों में मेरे, एक...
कस्तूरी मृग !!!
.....वाह ! अगर छूट जाती मुझसे ये क्षणिकाएं तो ..समय बहुत कम मिल पाता है ...मगर ना जाने क्यों जहाँ मोहब्बत लिखी होती है वहाँ मैं पहुँच ही जाता हूँ !
शुक्रिया हबीब साहब ...और लुटाते जाइये ये दौलत !!