Wednesday, July 11, 2012

ग़ज़ल

कुछ व्यस्तताओं के चलते अपनी लम्बी अनुपस्थिति के लिए स्नेही मित्रों से सादर क्षमायाचना, आप सबके सहृदय स्नेह के लिए सादर आभार सहित शुभाभिनंदन... शीघ्र ही आप स्नेही स्वजनों के साथ नियमितता पुनर्स्थापित हो जायेगी, इसी आशा शुभेक्षाओं के साथ प्रस्तुत है एक गजल....


घिर उमड़ते आये बादल आसमा पे छा गये। 
रंग चाहत का बदन पर रूह पर बरसा गये 

वो तड़पना चाँद का रातों की तनहाई तले,
भोर के पंछी चहकते गीत गा फुसला ये 

जिंदगी के पार ज़न्नत की फ़ज़ाएँ थी सुनी,
वह झुकाये आँख ज़न्नत की अदा दिखला गये

क्यूँ पसे महमिल ही आए क्यूँ सबा भी दरमियाँ,  
लूटने फिर चैन दिल का कुछ सुकूँ छलका गये

इश्क भी है क्या 'हबीब' औहाम के किस्से नहीं?
अश्क में डूबे सुनहरे ख्वाब थे बिखरा गए 
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शब्दार्थ - औहाम=भ्रांतियां
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36 comments:

  1. बेहतरीन गज़ल...
    दाद कबूल करें.......
    सादर
    अनु

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  2. जिंदगी के पार ज़न्नत की फ़ज़ाएँ थी सुनी,
    वह झुकाये आँख ज़न्नत की अदा दिखला गये।...अरे वाह

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  3. क्यूँ पसे महमिल ही आए क्यूँ सबा भी दरमियाँ,
    लूटने फिर चैन दिल का कुछ सुकूँ छलका गये।..बहुत सुन्दर गजल..आभार

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  4. जिंदगी के पार ज़न्नत की फ़ज़ाएँ थी सुनी,
    वाह ... बेहतरीन

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  5. जिंदगी के पार ज़न्नत की फ़ज़ाएँ थी सुनी,
    वह झुकाये आँख ज़न्नत की अदा दिखला गये।

    मिश्रा जी अचूक निशाना है आपका, सीधे जिगर के पार ...बहुत खूब !

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  6. वो तड़पना चाँद का रातों की तनहाई तले,
    भोर के पंछी चहकते गीत गा फुसला गये।

    वाह ... बहुत खूबसूरत गज़ल

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  7. वो तड़पना चाँद का रातों की तनहाई तले,
    भोर के पंछी चहकते गीत गा फुसला गये।

    वाह ,,,,, बहुत सुंदर गजल ,,,,

    RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...

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  8. घिर उमड़ते आये बादल आसमा पे छा गये।
    रंग चाहत का बदन पर रूह पर बरसा गये।

    बहुत ही सुंदर भाव हैं गजल के हबीब भाई, एक-एक शेर में कसावट है। आभार

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  9. हबीब साहिब मजा आ गया

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  10. वो तड़पना चाँद का रातों की तनहाई तले,
    भोर के पंछी चहकते गीत गा फुसला गये।
    चाँद का मानवीकरण .चाँद के मथ्थे मढ़ दो अपनी तमाम उदासी ,तमाम वीरानी .बढिया गजल कही है आपने .

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  11. बया चहकती नीड़ में, चिड़िया मौज मनाय।
    पौध धान की शान से, लहर-लहर लहराय।

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  12. वो तड़पना चाँद का रातों की तनहाई तले,
    भोर के पंछी चहकते गीत गा फुसला गये।

    बेहतरीन ग़ज़ल !!!

    सादर

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  13. सभी शेर बहुत सुन्दर, बधाई.

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  14. वो तड़पना चाँद का रातों की तनहाई तले,
    भोर के पंछी चहकते गीत गा फुसला गये।

    खुबसूरत ग़ज़ल

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  15. ये अदा जो नज़र की,जन्नत-सी लागे है हुज़ूर
    रहिए बचके,पहले भी कितने हैं गच्चे खा गए!

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  16. आजकल तो बादलों के ही किस्से हैं हर जगह..

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  17. जिंदगी के पार ज़न्नत की फ़ज़ाएँ थी सुनी,
    वह झुकाये आँख ज़न्नत की अदा दिखला गये।

    सुन्दर ग़ज़ल
    सादर

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  18. इश्क भी है क्या हबीब औहाम के किस्से नहीं?
    अश्क में डूबे सुनहरे ख्वाब थे बिखरा गए।

    क्या कहने..!
    इश्क और अश्क का गहरा नाता है।

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  19. प्रस्तुति अच्छी लगी। मेरे नए पोस्ट "अतीत से वर्तमान तक का सफर पर" आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

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  20. वो तड़पना चाँद का रातों की तनहाई तले,
    भोर के पंछी चहकते गीत गा फुसला गये। ...

    बहुत खूब ... सुबह की कलरव तो आशा की फुहार लाती है तन्हाई कों मिटा देती है ... लाजवाब शेर है इस मुकम्मल गज़ल का ...

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  21. बहुत सुन्दर शेर ..लाजवाब..

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  22. बहुत ही प्रशंसनीय शेर।

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  23. वो तड़पना चाँद का रातों की तनहाई तले,
    भोर के पंछी चहकते गीत गा फुसला गये।
    वाह वाह अत्यन्त खूबसूरत भाव पूर्ण शेर.....
    सादर !!!

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  24. वह झुकाये आँख ज़न्नत की अदा दिखला गये..

    कमाल है , बधाई !

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  25. ग़ज़ल जब दिल से निकलती है, और सीधे दिल तक पहुंचती है, तो इसे मैं सफल ग़ज़ल मानता हूं। इस ग़ज़ल में वैसा ही कुछ खास है। और इस खास को खासमखास इस तरह की पंक्तियां बना देती हैं --
    “रंग चाहत का बदन पर रूह पर बरसा गये।”

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  26. वाह वाह... नायाब रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम

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  27. जिंदगी के पार ज़न्नत की फ़ज़ाएँ थी सुनी,
    वह झुकाये आँख ज़न्नत की अदा दिखला गये।

    जन्नत की सैर के लिए बधाइयाँ हबीब साहब ....:))


    लाजवाब..!!

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  28. वो तड़पना चाँद का रातों की तनहाई तले,
    भोर के पंछी चहकते गीत गा फुसला गये।

    ....बहुत खूब! बेहतरीन गज़ल...

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  29. ग़ज़ल का मज़ा ऐसे ही तो आता है !

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  30. जिंदगी के पार ज़न्नत की फ़ज़ाएँ थी सुनी,
    वह झुकाये आँख ज़न्नत की अदा दिखला गये।
    लाजवाब!!

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  31. जिंदगी के पार ज़न्नत की फ़ज़ाएँ थी सुनी,
    वह झुकाये आँख ज़न्नत की अदा दिखला गये।

    बहुत सुन्दर भाव

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  32. जिंदगी के पार ज़न्नत की फ़ज़ाएँ थी सुनी,
    वह झुकाये आँख ज़न्नत की अदा दिखला गये।
    क्या लिखते हैं कमाल कर देतें हैं हबीब साहब ,लेखनी का जादू गजल बनके बोलता है ...रिवार्बरेट करता है अनुगूंज बाकी है जो पढ़ा है ....

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  33. वो तड़पना चाँद का रातों की तनहाई तले,
    भोर के पंछी चहकते गीत गा फुसला गये।

    जिंदगी के पार ज़न्नत की फ़ज़ाएँ थी सुनी,
    वह झुकाये आँख ज़न्नत की अदा दिखला गये।

    बिलकुल नायाब प्रस्तुति.

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  34. वो तड़पना चाँद का रातों की तनहाई तले,
    भोर के पंछी चहकते गीत गा फुसला गये।

    लाजवाब हबीब साहब ....!!

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मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.

"अपनी भाषा, हिंदी भाषा" (हिंदी में लिखें)

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