कुछ व्यस्तताओं के चलते अपनी लम्बी अनुपस्थिति के लिए स्नेही मित्रों से सादर क्षमायाचना, आप सबके सहृदय स्नेह के लिए सादर आभार सहित शुभाभिनंदन... शीघ्र ही आप स्नेही स्वजनों के साथ नियमितता पुनर्स्थापित हो जायेगी, इसी आशा शुभेक्षाओं के साथ प्रस्तुत है एक गजल....
घिर उमड़ते आये बादल आसमा पे छा गये।
रंग चाहत का बदन पर रूह पर बरसा गये।
वो तड़पना चाँद का रातों की तनहाई तले,
भोर के पंछी चहकते गीत गा फुसला गये।
जिंदगी के पार ज़न्नत की फ़ज़ाएँ थी सुनी,
वह झुकाये आँख ज़न्नत की अदा दिखला गये।
क्यूँ पसे महमिल ही आए क्यूँ सबा भी दरमियाँ,
लूटने फिर चैन दिल का कुछ सुकूँ छलका गये।
इश्क भी है क्या 'हबीब' औहाम के किस्से नहीं?
अश्क में डूबे सुनहरे ख्वाब थे बिखरा गए।
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शब्दार्थ - औहाम=भ्रांतियां
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बेहतरीन गज़ल...
ReplyDeleteदाद कबूल करें.......
सादर
अनु
जिंदगी के पार ज़न्नत की फ़ज़ाएँ थी सुनी,
ReplyDeleteवह झुकाये आँख ज़न्नत की अदा दिखला गये।...अरे वाह
क्यूँ पसे महमिल ही आए क्यूँ सबा भी दरमियाँ,
ReplyDeleteलूटने फिर चैन दिल का कुछ सुकूँ छलका गये।..बहुत सुन्दर गजल..आभार
जिंदगी के पार ज़न्नत की फ़ज़ाएँ थी सुनी,
ReplyDeleteवाह ... बेहतरीन
जिंदगी के पार ज़न्नत की फ़ज़ाएँ थी सुनी,
ReplyDeleteवह झुकाये आँख ज़न्नत की अदा दिखला गये।
मिश्रा जी अचूक निशाना है आपका, सीधे जिगर के पार ...बहुत खूब !
वो तड़पना चाँद का रातों की तनहाई तले,
ReplyDeleteभोर के पंछी चहकते गीत गा फुसला गये।
वाह ... बहुत खूबसूरत गज़ल
वो तड़पना चाँद का रातों की तनहाई तले,
ReplyDeleteभोर के पंछी चहकते गीत गा फुसला गये।
वाह ,,,,, बहुत सुंदर गजल ,,,,
RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...
घिर उमड़ते आये बादल आसमा पे छा गये।
ReplyDeleteरंग चाहत का बदन पर रूह पर बरसा गये।
बहुत ही सुंदर भाव हैं गजल के हबीब भाई, एक-एक शेर में कसावट है। आभार
हबीब साहिब मजा आ गया
ReplyDeleteवो तड़पना चाँद का रातों की तनहाई तले,
ReplyDeleteभोर के पंछी चहकते गीत गा फुसला गये।
चाँद का मानवीकरण .चाँद के मथ्थे मढ़ दो अपनी तमाम उदासी ,तमाम वीरानी .बढिया गजल कही है आपने .
बया चहकती नीड़ में, चिड़िया मौज मनाय।
ReplyDeleteपौध धान की शान से, लहर-लहर लहराय।
वो तड़पना चाँद का रातों की तनहाई तले,
ReplyDeleteभोर के पंछी चहकते गीत गा फुसला गये।
बेहतरीन ग़ज़ल !!!
सादर
सभी शेर बहुत सुन्दर, बधाई.
ReplyDeleteवो तड़पना चाँद का रातों की तनहाई तले,
ReplyDeleteभोर के पंछी चहकते गीत गा फुसला गये।
खुबसूरत ग़ज़ल
ये अदा जो नज़र की,जन्नत-सी लागे है हुज़ूर
ReplyDeleteरहिए बचके,पहले भी कितने हैं गच्चे खा गए!
आजकल तो बादलों के ही किस्से हैं हर जगह..
ReplyDeleteजिंदगी के पार ज़न्नत की फ़ज़ाएँ थी सुनी,
ReplyDeleteवह झुकाये आँख ज़न्नत की अदा दिखला गये।
सुन्दर ग़ज़ल
सादर
इश्क भी है क्या हबीब औहाम के किस्से नहीं?
ReplyDeleteअश्क में डूबे सुनहरे ख्वाब थे बिखरा गए।
क्या कहने..!
इश्क और अश्क का गहरा नाता है।
प्रस्तुति अच्छी लगी। मेरे नए पोस्ट "अतीत से वर्तमान तक का सफर पर" आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
ReplyDeleteवो तड़पना चाँद का रातों की तनहाई तले,
ReplyDeleteभोर के पंछी चहकते गीत गा फुसला गये। ...
बहुत खूब ... सुबह की कलरव तो आशा की फुहार लाती है तन्हाई कों मिटा देती है ... लाजवाब शेर है इस मुकम्मल गज़ल का ...
बहुत सुन्दर शेर ..लाजवाब..
ReplyDeleteबहुत ही प्रशंसनीय शेर।
ReplyDeleteवो तड़पना चाँद का रातों की तनहाई तले,
ReplyDeleteभोर के पंछी चहकते गीत गा फुसला गये।
वाह वाह अत्यन्त खूबसूरत भाव पूर्ण शेर.....
सादर !!!
वह झुकाये आँख ज़न्नत की अदा दिखला गये..
ReplyDeleteकमाल है , बधाई !
ग़ज़ल जब दिल से निकलती है, और सीधे दिल तक पहुंचती है, तो इसे मैं सफल ग़ज़ल मानता हूं। इस ग़ज़ल में वैसा ही कुछ खास है। और इस खास को खासमखास इस तरह की पंक्तियां बना देती हैं --
ReplyDelete“रंग चाहत का बदन पर रूह पर बरसा गये।”
वाह वाह... नायाब रचना, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम
जिंदगी के पार ज़न्नत की फ़ज़ाएँ थी सुनी,
ReplyDeleteवह झुकाये आँख ज़न्नत की अदा दिखला गये।
जन्नत की सैर के लिए बधाइयाँ हबीब साहब ....:))
लाजवाब..!!
अति सुन्दर!
ReplyDeleteवो तड़पना चाँद का रातों की तनहाई तले,
ReplyDeleteभोर के पंछी चहकते गीत गा फुसला गये।
....बहुत खूब! बेहतरीन गज़ल...
ग़ज़ल का मज़ा ऐसे ही तो आता है !
ReplyDeleteजिंदगी के पार ज़न्नत की फ़ज़ाएँ थी सुनी,
ReplyDeleteवह झुकाये आँख ज़न्नत की अदा दिखला गये।
लाजवाब!!
जिंदगी के पार ज़न्नत की फ़ज़ाएँ थी सुनी,
ReplyDeleteवह झुकाये आँख ज़न्नत की अदा दिखला गये।
बहुत सुन्दर भाव
जिंदगी के पार ज़न्नत की फ़ज़ाएँ थी सुनी,
ReplyDeleteवह झुकाये आँख ज़न्नत की अदा दिखला गये।
क्या लिखते हैं कमाल कर देतें हैं हबीब साहब ,लेखनी का जादू गजल बनके बोलता है ...रिवार्बरेट करता है अनुगूंज बाकी है जो पढ़ा है ....
वो तड़पना चाँद का रातों की तनहाई तले,
ReplyDeleteभोर के पंछी चहकते गीत गा फुसला गये।
जिंदगी के पार ज़न्नत की फ़ज़ाएँ थी सुनी,
वह झुकाये आँख ज़न्नत की अदा दिखला गये।
बिलकुल नायाब प्रस्तुति.
very nice .thanks
ReplyDeleteTIME HAS COME ..GIVE YOUR BEST WISHES TO OUR HOCKEY TEAM -BEST OF LUCK ..JAY HO !
वो तड़पना चाँद का रातों की तनहाई तले,
ReplyDeleteभोर के पंछी चहकते गीत गा फुसला गये।
लाजवाब हबीब साहब ....!!