Wednesday, February 15, 2012

क्षणिकाएं

खुशी

गुलाब की
पांखुरी को छूते ही
खामोशी से उतर आई
मेरी तर्जनी की नाख़ून पर
मुस्कुराती हुई
ओस की एक बूँद.....

अभी,
मेरी नाडियों का स्पंदन
मुझे डराने लगा है....
______________________

अस्तित्व

मैंने सोचा था,
वह एक बूँद है....
गिरकर पलकों से
ज़मीन में कहीं खो जाएगा....
मैं गलत था...!
वह एक बूँद का सागर
फैला है दिगंत तक
मेरे सम्मुख....

उसे पार करना
मेरे वश का नहीं,
और डूबने का सलीका
मैं सीख न सका.....!!
______________________

भ्रम

र्द की टहनी से
बिछड आये पत्ते ने
पलकों पर दस्तक दी...
देखा....
चेहरे पर
बेइंतहा ज़र्दी के बीच
चंद हरियाले से छींटे...

यह क्या...!!!
मैंने आँखें मलकर
दोबारा देखा...
कहीं मेरे सामने कोई
आईना तो नहीं.... 
______________________ 

विरह

मेरे दोस्त...
मेरी राहे हयात से
क्यूँ समेट ली तुमने
अपनी यादों की धूप...??

देख..!
मेरे लफ़्ज़ों की तरह
मेरी रूह भी ठिठुरी जाती है....
______________________ 



31 comments:

  1. उसे पार करना
    मेरे वश का नहीं,
    और डूबने का सलीका
    मैं सीख न सका.....!!
    ...
    करूँ तो क्या करूँ भाई जी हालात तो आपने मेरे बयान कर दिया कुछ राह भी बताइए !

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  2. देख..!
    मेरे लफ़्ज़ों की तरह
    मेरी रूह भी ठिठुरी जाती है....एक से बढकर एक शानदार क्षणिकाएं।

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  3. वाह सभी की सभी बेहद उम्दा हैं |

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  4. हर क्षणिका बहुत सुंदर भावों को सँजोये हुये ... यादों की धूप अच्छी लगी

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  5. वाह!!!
    सभी बेहद खूबसूरत....
    सादर.

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  6. "विरह

    मेरे दोस्त...
    मेरी राहे हयात से
    क्यूँ समेट ली तुमने
    अपनी यादों की धूप...??"

    वाह हबीब साहब ! बहुत खूबसूरत।

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  7. चारो क्षणिकाएं बढ़िया हैं.

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  8. बहुत-बहुत ही अच्छी भावपूर्ण रचनाये है......

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  9. Astitv ne dil loot liya ji

    उसे पार करना
    मेरे वश का नहीं,
    और डूबने का सलीका
    मैं सीख न सका.....!!kya baat hei !

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  10. वाह! बहुत बढ़िया, रोचक !

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  11. आपको पढ़कर अदब से सर झुकता है

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  12. बेहतरीन रचनाएं।

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  13. चारों ही विषयों पर सशक्त और स्पष्ट अभिव्यक्ति....

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  14. गजब की क्षणिकाएं प्रस्तुत की हैं आपने.
    पढकर मन मग्न हो गया है.

    मेरे ब्लॉग पर आपके आने का मैं आभारी हूँ.

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  15. मैंने सोचा था,
    वह एक बूँद है....
    गिरकर पलकों से
    ज़मीन में कहीं खो जाएगा....
    मैं गलत था...!
    वह एक बूँद का सागर
    फैला है दिगंत तक
    मेरे सम्मुख....
    kise behtar kahun , kise kam

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  16. एक एक क्षणिका एक एक बूँद में एक एक सागर समेटे है.. भावनाओं का, गहन अर्थ का और एक दार्शनिकता का!!

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  17. सभी क्षणिकाएँ बहुत ही बढ़िया हैं सर!


    सादर

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  18. वाह|||
    सभी सुन्दर एवं बेहतरीन है...
    बहुत ही बढ़िया

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  19. क्या आप इतने ही सामर्थ्य से जीवन के उल्लास को व्यक्त करना चाहेंगे?

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  20. देख..!
    मेरे लफ़्ज़ों की तरह
    मेरी रूह भी ठिठुरी जाती है....

    अति कोमल रचनाएँ ! बहुत सुन्दर !

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  21. मेरे दोस्त...
    मेरी राहे हयात से
    क्यूँ समेट ली तुमने
    अपनी यादों की धूप...??

    देख..!
    मेरे लफ़्ज़ों की तरह
    मेरी रूह भी ठिठुरी जाती है...

    ....लाज़वाब...सभी क्षणिकाएं बहुत सुंदर

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  22. मैंने सोचा था,
    वह एक बूँद है....
    गिरकर पलकों से
    ज़मीन में कहीं खो जाएगा....
    मैं गलत था...!
    वह एक बूँद का सागर
    फैला है दिगंत तक
    मेरे सम्मुख....

    उसे पार करना
    मेरे वश का नहीं,
    और डूबने का सलीका
    मैं सीख न सका Bahut Khoob.
    ____________________

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  23. देख..!
    मेरे लफ़्ज़ों की तरह
    मेरी रूह भी ठिठुरी जाती है....
    वाह ! बहुत सुंदर क्षणिकाएँ !

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  24. सभी क्षणिकायें प्राकृतिक बिम्बों में जीवन दर्शन कर रही हैं, वाह , क्या बात है.इसे कलम कहूँ या तूलिका ?

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  25. बहुत ही भावपूर्ण क्षणिकाएँ...
    सभी एक से बढ़कर एक...
    सादर

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  26. देखा....
    चेहरे पर
    बेइंतहा ज़र्दी के बीच
    चंद हरियाले से छींटे...

    WAH MISHRA JI SUNDAR REKHANKAN KE SATH HI LAJABAB SHABDON KA SANYOJAN ...AP NE TO RACHANA ME CHAR CHAND LAGA DIYA....BADHAI SWEEKAREN.

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  27. इन क्षणिकाओं के लिये एक शब्द कहा जा सकता है अद्भुत..

    बहुत सुंदर. बधाई.

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  28. सभी बेमिसाल .. पर आसुओं की बूँद का अस्तित्व गहरे उतर गया ..

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  29. उसे पार करना
    मेरे वश का नहीं,
    और डूबने का सलीका
    मैं सीख न सका.....!!
    सुन्दर भावों की अतिसुन्दर क्षणिकाएं

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मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.

"अपनी भाषा, हिंदी भाषा" (हिंदी में लिखें)

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