Friday, July 1, 2011

"चेहरे तो सारे जाली हैं"

गमारे रिंद सवाली हैं 
मैकदा लेकिन खाली है 

माली हैरां न खिलने की 
गुलों ने कसम उठा ली है. 

बाग़ में उड़ती बातें हैं 
के आंधी आने वाली है. 

वादे किये पर न आईं 
यादें तेरी शिकाली हैं. 

माह का इंतज़ार कैसा?
रातें आजकल काली हैं. 

गाते गाते लड़ने लगे 
यारों कैसी कव्वाली है? 

मुझको दिखे  हैं उलटे लोग
'इतनी भी'  जबकि ना ली है. 

दिल ही पढना सीख 'हबीब'
चेहरे तो सारे जाली हैं.

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8 comments:

  1. दिल ही पढना सीख हबीब

    चेहरे तो सारे जाली हैं

    .....................सच्चा शेर , उम्दा ग़ज़ल

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  2. वाह साहब क्या खूब कही है आपने "गमारे रिंद""शकाली" का अर्थ समझ नही आया क्रुपया उसे भी एड करें तो पूरा लुफ़्त उठाया जाये

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  3. कल ,शनिवार ३०-७-११ को आपकी किसी पोस्ट की चर्चा होगी नयी -पुरानी हलचल पर..कृपया अवश्य पधारें ..!!

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  4. बहुत खूबसूरती से आज की बात कही है ..

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  5. वाह ………बेहद खूबसूरत प्रस्तुति।

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  6. खूबसूरत गजल.आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  7. बाग़ में उड़ती बातें हैं
    के आंधी आने वाली है.

    बहुत ही सुंदर...

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मेरी हौसला-अफजाई करने का बहुत शुक्रिया.... आपकी बेशकीमती रायें मुझे मेरी कमजोरियों से वाकिफ करा, मुझे उनसे दूर ले जाने का जरिया बने, इन्हीं तमन्नाओं के साथ..... आपका हबीब.

"अपनी भाषा, हिंदी भाषा" (हिंदी में लिखें)

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